डीपफेक:दोस्तों आज के इस डिजिटल जमाने में टेक्नोलॉजी जितनी अच्छी है उतनी बुरी भी है । आजकल शोशल मीडिया में हम कुछ न कुछ गलत चीजें वायरल होती देख सकते है ,लेकिन क्या आपको पता है यह सब fake भी हो सकता है ।आज के इस AI के जमाने में हम किसी का भी फोटो या वीडियो को एडिट करके उसका नकली फोटो या वीडियो बना सकते है । इसे हम डीपफेक कहते है ।
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डीपफेक क्या है ?

कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने गलत सूचना और डीपफेक की पहचान करने के लिए सोशल मीडिया mediators के लिए एडवाइजरी जारी की है। डीपफेक एक ऐसा वीडियो या फोटो होता है, जिसे कंप्यूटर algorithm program से ऐसे एडिट किया जाता है कि उसमें मूल शख्स की जगह कोई दूसरा शख्स दिखाई देने लगता है। ऐसा वीडियो या फोटो देखने में बिल्कुल असली जैसा प्रतीत होता है।
डीपफेक के तहत किसी व्यक्ति के face, body, sound, speech, environment या किसी अन्य व्यक्तिगत जानकारी की नकल की जा सकती है। किसी व्यक्ति का एक प्रतिरूप बनाने के लिए इस जानकारी में हेर-फेर किया जा सकता है।
डीपफेक बनाने के लिए आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस के एक रूप का उपयोग किया जाता है, जिसे डीप लर्निंग कहा जाता है। इससे ऐसी काल्पनिक घटनाओं की image बनाई जा सकती हैं, जो कभी घटित ही नहीं हुई हैं।
डीप लर्निंग, मशीन लर्निंग का ही एक भाग है, जो बड़े डेटा सेट से सीखने के लिए आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करता है। यह मानव मस्तिष्क की कार्य प्रणाली से प्रेरित होता है। न्यूरल नेटवर्क क्या है इसे हम नीचे जानेंगे ।
डीपफेक कैसे काम करता है?

- डीपफेक के तहत घटनाओं की इमेज तैयार करने के लिए डीप लर्निंग, artificial intelligence (AI) और फोटोशॉप जैसी technology का उपयोग किया जाता है।
- ऐसे वीडियो तैयार करने के लिए GANs (Generative adversarial networks ) नामक technology का उपयोग किया जाता है। GANs मशीन लर्निंग का ही एक हिस्सा है।
- डीपफेक में जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GAN) का भी उपयोग किया जाता है, जिसमें जनरेटर ( Generator) और डिस्क्रिमिनेटर(Discriminators) शामिल होते हैं।
- Generator नई इमेज तैयार करने के लिए intial डेटा सेट का उपयोग करते हैं।
- इसके बाद Discriminators वास्तविक इमेज से तुलना करके बनाई गई इमेज का Evaluation करता है और उसमें आगे सुधार करता है।
- डीपफेक में वेरिएशनल ऑटो-एनकोडर 27 नामक एक डीप-लर्निंग कंप्यूटर नेटवर्क का भी उपयोग किया जाता है।
- Variational Auto-Encoder 27 एक प्रकार का आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क है, जो एक versatile “फेस स्वैप ” (Face swap) मॉडल को सक्षम बनाता है।
डीपफेक पर लागू कानूनी नियम
भारत में लागू legal provisions : भारत में, डीपफेक टेक्नोलॉजी के regulation के लिए कोई विशेष legal provisions नहीं हैं। लेकिन कुछ कानून indirect रूप से डीपफेक संबंधी मुद्दों का resolution करते हैं, जैसे- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66E एवं धारा 66D तथा भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957
डीपफेक के विरुद्ध ग्लोबल उपाय:
Google ने कई ऐसे tools लॉन्च करने की घोषणा की है। जिससे आर्टिफिशियल रूप से तैयार किए गए कंटेंट की पहचान करने के लिए watermarking की जाएगी।
न्यूरल नेटवर्क क्या होते हैं?
न्यूरल नेटवर्क एक मशीन लर्निंग प्रोग्राम या मॉडल होता है। यह human brain के समान निर्णय लेता है। इसके लिए यह बायोलॉजिकल neurons द्वारा एक साथ मिलकर काम करने के तरीके की नकल करता है और जिसका उपयोग करके मानव मस्तिष्क (human brain) घटनाओं की पहचान करता है, options को समझता है और conclusion पर पहुंचता है।
- प्रत्येक न्यूरल नेटवर्क में नोड्स या आर्टिफीशियल न्यूरॉन्स की परतें होती हैं – एक इनपुट परत, एक या अधिक hidden परतें और एक आउटपुट परत।
- न्यूरल नेटवर्क को कभी-कभी कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क25 या सिम्युलेटेड न्यूरल नेटवर्क (SNNs) भी कहा जाता है।
- न्यूरल नेटवर्क विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे feedforward न्यूरल नेटवर्क, या Multi-Layer Perceptron (MLPs), conventional न्यूरल नेटवर्क (CNNs), recurrent न्यूरल नेटवर्क (RNNs) आदि।
निष्कर्ष
आजकल ऐसी टेक्नोलॉजी आ गई है जिससे कुछ भी असंभव नहीं है। जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आया जब से और भी ज्यादा खतरनाक हो गई है। हमने इस ऑर्टिकल में डीपफेक के बारे में बताया है कि यह क्या है और कैसे काम करता है।अगर आपको जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों में share जरूर करें।
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